🔵 धर्म की प्रथम घोषणा यही है कि आत्मा एक है। ‘एक’ अनेक नहीं हो सकता। यह कैसे सम्भव है? एक अनेक के समान प्रतीत अवश्य होता है। जैसे रेगिस्तान में जल का आभास किसी स्थिति विशेष में मनुष्य, आकाश में नीलिमा, सीप की चाँदी तथा रस्सी का साँप। इसे ‘अध्यात्म’ कहते हैं। इस अध्यात्म को ब्रह्म- चिन्तन अथवा ज्ञान-अध्यात्म द्वारा नष्ट कर दे और ब्रह्मशक्ति द्वारा चमत्कृत हो। ब्रह्म अवस्था को पुनः प्राप्त करने की चेष्टा कर। अपने सत्-चित्त आनन्द स्वरूप में रमण कर।
🔵 अज्ञान के कारण ही दुख और क्लेश व्यापते हैं। अपनी वास्तविक प्रकृति को पहचान और अनुभव कर। वास्तव में अस्तित्व, ज्ञान और सुख सम्पूर्ण हैं। तू वास्तव में अमर है तथा सर्वव्यापक आत्मा है। उपनिषद् के इस उपदेश को स्मरण रख “जीव और ब्रह्म एक है” ओऽम् के रहस्य पर विचार कर और अपने स्वरूप में स्थित हो। केवल आत्म-ज्ञान द्वारा ही अज्ञान तथा तीनों क्लेशों का नाश किया जा सकता है। आत्म ज्ञान ही तुझे अमर गति, अनन्त सुख, चिरस्थायी शान्ति और सुख दे सकेगा।
🔵 चारों वेद एक स्वर से कहते हैं कि वास्तव में तू ही अविनाशी आत्मा अथवा अमर ब्रह्म है। शान्ति तथा चतुराई से अपने ऊपर के एक-एक आवरण को तथा मन को इन्द्रिय विषयों से हटा ले। एकान्त वास कर। इन्द्रिय विषयों को विष समझ। दूरदर्शिता एवं अनासक्ति द्वारा अपने मन को वश में कर। विवेक, वैराग्य, शत-सम्पत तथा मुमुक्षत्व को सर्वश्रेष्ठ श्रेणी तक बढ़ा। सर्वदा ध्यानस्थ रह। एक क्षण भी व्यर्थ न जाने दे।
🔵 आकाश सौम्य और सर्वव्यापक है, इसीलिए ब्रह्म की उपमा आकाश से दी जाती है। प्रारम्भ में तू सौम्य ब्रह्म पर विचार कर सकता है। पहले आकाश पर विचार कर और फिर धीरे-धीर ब्रह्म पर। इस प्रकार गूढ़ चिन्तन में लीन हो जा। ‘ओऽम्’ ब्रह्म का चिह्न है। अर्थात् परमात्मा का चिह्न है। ओऽम् पर विचार कर। जब तू ओऽम् का चिन्तन करेगा, तब तुझे अवश्य ही ब्रह्म का ध्यान होगा क्योंकि ब्रह्म का चिह्न ओऽम् है।
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