आंतरजालावरून साभार
दत्तदशक स्तोत्र - प. पू. श्री रंग अवधूत रचित
अथध्यानम: माळा कमंडलु लसे कर नीचलामां डमरु त्रिशूळ वचला करमां विराजे ऊंचा द्विहस्त कमले शुभ शंखचक्र एवा नमुं विधि हरीश स्वरुप दत्त
भवभयहारक श्रीहरि प्रणमुं वारंवार| जन्ममरण टाळी विभो करो शीघ्र भवपार|| रेवातटवासी नमुं, वासुदेव यतिराय| मदन मनोहर मूर्ति शी! लागुं पुनि पुनि पाय|| नानारुपे तुं वसे, नानानामे एक| भक्तजनोने कारणे धारे विध विध भेख|| जन्म्युं नोतुं आ कशुं, हतो त्याहरे तुं ज| रहेशे ना आ तोये तुं होईश सच्चित पुंज|| मन बांधे मन छोडवे, रच्युं मने आ सर्व| नाना नेह कथे श्रुति एक अनेके शर्व|| दत्त कहे कोई तने रामकृष्ण वळी कोक| दिनमणि शिवशक्त्यादि तुं नामरुप सहु फोक|| गंगा यमुना सरस्वती भिन्न नाम जे छेक| बहुरुपी बहुनाममां जळरुपे सहु एक|| रसना नाम रटे भले चित्त लक्ष्यमां होय| भवे भावथी भव मळे भक्त स्वयंभव होय|| जन्म मरण तेने नही स्वयं जनार्दन एह| रेवा सागरमां भळे रहे भिन्न क्यां तेह|| महातपस्वी योगीओ भेदे गोथां खाय| नानात्मैक्यज्ञानथी रंग पार थई जाय|| दत्त दशक आ जे पढे राखी लक्ष्यमां ध्यान| दत्त कृपा ए पर थई पामे नर निर्वाण||
अवधूत चिंतन श्री गुरुदेव दत्त!
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