सतगुरु
मिला जु जानिये, ज्ञान उजाला होय ।
भ्रम का
भांड तोड़ि करि, रहै निराला होय ॥
जेहि खोजत
ब्रह्मा थके, सुर नर मुनि अरु देव ।
कहै कबीर
सुन साधवा, करु सतगुरु की सेव ॥
पूरा
सतगुरु न मिला, सुनी अधूरी सीख ।
स्वाँग यती
का पहिनि के, घर घर माँगी भीख ॥
गुरु कीजिए
जानि के, पानी पीजै छानि ।
बिना
विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि ॥
यह तन विषय
की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।
सीस दिये
जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान ॥
गुरु किया
है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं ।
भवसागर के
जाल में, फिर फिर गोता खाहि ॥
गुरु लोभ
शिष लालची, दोनों खेले दाँव ।
दोनों बूड़े बापुरे, चढ़ि पाथर
की नाँव ॥
मूल ध्यान गुरु रूप है, मूल पूजा
गुरु पाँव ।
मूल नाम गुरु वचन है, मूल सत्य सतभाव ॥
जो गुरु ते भ्रम न मिटे, भ्रान्ति न जिसका जाय ।
सो गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लाय ॥
मूल नाम गुरु वचन है, मूल सत्य सतभाव ॥
जो गुरु ते भ्रम न मिटे, भ्रान्ति न जिसका जाय ।
सो गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लाय ॥
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